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इस नदी की तेज लहरों में / हरिवंश प्रभात
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इस नदी की तेज लहरों में हुए जो पार हैं।
आस कुछ हैं, ख़ास कुछ हैं, पर मेरे सब यार हैं।
रुक नहीं सकता क़दम हरगिज़ मेरा यह जान लो,
धूप बारिश कुछ भी हो, चलने को यूँ तैयार हैं।
नागरिक हम देश के सब एक हैं इसको समझ,
भाई-चारा छोड़ के क्यों, लड़ रहे बेकार हैं।
उनकी राहों पर चलें सब देश के ये नवजवान,
पूर्वजों को पढ़ते रहना, बस यही उपकार है।
आँसुओं के फूल अर्पण कर, शहीदों के लिए,
शान से वे देश को रखते, बड़े किरदार हैं।