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इस पल पल की पीड़ा का / सुमित्रानंदन पंत

इस पल पल की पीड़ा का
कह, मोल कहाँ है, साक़ी!
यह स्वर्ग मर्त्य से बढ़कर
अनमोल दवा है, साक़ी!
भर दे फिर उर का प्याला
छबि की हाला से सुन्दर,
जग के देशों से उसका
है एक बूँद श्रेयस्कर!
अपनी चिर उन्मद चितवन
तू फेर इधर को क्षण भर,
तेरे ये निस्तल लोचन
पृथ्वी नभ से भी दुस्तर!
इस घुल घुल कर मिटने की
चिर गूढ़ कथा है, साक़ी!
यह स्वर्ग मर्त्य से बढ़कर
अनमोल व्यथा है, साक़ी!