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एतस्मान्मां कुशलिनमभिज्ञानदानाद्विदित्वा
मा कौलीनाच्चकितनयने! मध्यविश्वासिनी भू:।
स्नेहानाहु: किमपि विरहे ध्वंसिनस्ते त्वभोगा-
दिष्टे वस्तुन्युपचितरसा: प्रेमराशीभवन्ति।।
इस पहचान से मुझे सकुशल समझ लेना।
हे चपलनयनी, लोकचबाव सुनकर कहीं मेरे
विषय में अपना विश्वास मत खो देना।
कहते हैं कि विरह में स्नेह कम हो जाता
है। पर सच तो यह है कि भोग के अभाव
में प्रियतम का स्नेह रस के संचय से प्रेम
का भंडार ही बन जाता है।