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इस बियाबान में / अरुण देव

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नफ़रत में ताक़त है
किसी तेज़धार तलवार से भी अधिक
गोली की तरह धँस जाती है हिंसा
 
बहने लगती है जलती हुई हवा
झुलस जाते हैं फूल
नन्हें तलवों से टपकता है रक्त
 
आँगन में काटकर फेंक दिया गया है एक झटके में
वर्षों से तैयार हुआ आदमक़द
धुएँ में गुम हो गई हैं सब पतंगें
 
कि एक पीठ ढाल बनकर बिछ जाती है नफ़रतों से घिरे रहीम पर
कि एक राम को बचाकर सलामत पहुँचा देता है मुहम्मद उसके घर
 
तनकर एक वृद्ध खड़ा हो जाता है इस अन्धेरे के ख़िलाफ़
एक स्त्री प्रसव करा रही है भविष्य का
लौटता है एक बच्चा गुम हुए पतंग की डोर पकड़े
 
घृणा करने के चाहे हज़ार कारण हों
प्रेम करने के फिर भी बचे रहेंगे ।