भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस वक़्त / अजेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे कंधों पर कोई चेहरा नहीं है इस वक्त
नहीं है कनपटियों को छूती कोई गर्म सांस
हाथ नहीं है कोई भरोसेमंद मेरी पीठ पर
मेरी परेशानी से परेशाँ नहीं है कोई
मेरे बारे में कोई कुछ सोच नहीं रहा
इस वक्त
पूरी दुनिया में मैं कहीं नहीं हूँ ।

1988