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इस विचित्र खेल का अंत / अज्ञेय
Kavita Kosh से
इस विचित्र खेल का अन्त क्या, कहाँ, कब होगा?
विवेक कहता है, प्रत्येक घटना, जिस का कहीं आरम्भ होता है, कहीं न कहीं समाप्त होती है। तो फिर यह प्रणय, जिस का उद्भव एक मधुर स्वप्न में हुआ था, कहाँ तक चला जाएगा?
इस के दो ही अन्त हो सकते हैं : मिलन- या विच्छेद।
यहाँ कौन-सा?
मिलन? तो फिर क्यों यह घोर यातना, यह अविश्वास, यह अनिश्चय, यह ईष्र्या, यह वंचना की अनुभूति?
विच्छेद? तो फिर क्यों यह बढ़ती जाने वाली अशान्ति, यह विक्षोभ, यह उत्कट कामना, यह पागलपन?
दिल्ली जेल, 27 जून, 1932