इस सदी का आदमी / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
कुछ होने से पहले
न जाने क्यों
सब कुछ शांत हो जाता है
सही में
तुमने देखा होगा
तूफान आने की संभावना पाकर
वातावरण शांत हो जाता है
आकाश
धूलधुसरित बच्चे की तरह
मटमैला दिखने लगता हैं
और बकरियाँ मिमयाती हैं
कल गाँव में तूफान उठेगा
आज गाँव
पहले दिनों से ज्यादा
शांत नजर आने लगा है
मन में भय
रह-रह कर समाने लगा है
सारा आकाश
लहू से लाल हो उठेगा
अब बकरियाँ मिमियाती नहीं हैं
उसकी आँखे उन घासों पर टिकी हैं
जो बहुत शीघ्र ही जल जायेंगी
और घास
आसन्न मृत्यु से
जड़ी भूत हो गई हैं
निश्कंप
डरी हुई
और खेतों की पगडंडियाँ
सहमी
झुकी घासों के आँचल में
छुप गई हैं
तूफान के आने का
कोई भी विरोध नहीं कर रहा
कोई पहाड़ बनना नहीं चाह रहा
इसकी गति को मोड़ देने के लिये
सब अपनी-अपनी टांगों में
सर छुपाये
आँखे बन्द किये
खतरे के डर से
मुक्त हो गए हैं
आदमी समझ क्यों नहीं पा रहा है
क्यों एक विरोधी हाल होने के बावजूद
वह शुतुरमुर्ग हो रहा है