भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इस सागर के कारने बाबा जी / हरियाणवी
Kavita Kosh से
हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
इस सागर के कारने बाबा जी रूठा जाय दामाद रे
देहरी बैठी दादी रानी बिनवै सुन बेटा मेरी बात रे
अनमोल बेटी मैंने तुमको समर्पी तो सागर कौन बिसात रे
सोना भी देंगे रूपा भी देंगे वर मोहर हजार रे
एक ना देंगे दूल्हे! सागर अपना कुंवर करेंगे असनान रे
पन्थी आवै हाथ मुंह धौवें गडवै पीयें जल नीर रे