भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इस से कोई बहस नहीं क्या किया / मेला राम 'वफ़ा'
Kavita Kosh से
इस से कोई बहस नहीं क्या किया
जो भी किया आप ने अच्छा किया
तुझ को मेरे हुस्न से शुहरत मिली
मुझ को मेरे इश्क़ ने रुसवा किया
हक़ ने तुझे इशरते-इमरोज़ दी
मुझ को रहीने-ग़मे-फ़र्दा किया
किस से हुआ तर्के-तमन्ना यहां
किस ने यहां तर्के-तमन्ना किया
मिलता मुक़द्दर का भी क्यों कर मुझे
मैं ने हमीय्यत का न सौदा किया
वादा तेरा शाम को आने का था
राह तेरी सुब्ह से देखा किया
फर्ते-अक़ीदत से रहे-शौक़ में
सजदा ब-हर नक़्शे-पा किया
दुश्मनों को दुश्मनों से शिकवा क्यों
दोस्तों ने दोस्तों से क्या किया।