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इस सोच में लौलीन हूँ जाऊँ कि न जाऊँ / कांतिमोहन 'सोज़'
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इस सोच में लौलीन हूं जाऊँ कि न जाऊँ ।
जो बीत चुका है उसे आवाज़ लगाऊँ ।।
मैं हूं तो वही जिसने कभी झूट न बोला
फूलों ने जो बख़्शे हैं उन्हें ज़ख़्म बताऊँ ।
घनघोर अन्धेरे में चमक है तो इसी की
इस दर्द की किंदील को मैं कैसे बुझाऊँ ।
जब उसने पुकारा तो मैं मसरूफ़ बहुत था
अब उम्र के सैलाब को किस मुंह से बुलाऊँ ।
इस दिल ने मुझे सोज़ कहीं का नहीं छोड़ा
दुखता है तो कमबख्त को कुछ और दुखाऊँ ।।