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इस स्वपन वर्जित समय में / आनंद गुप्ता

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(प्रो. एम. एम. कलबुर्गी के लिए)

इस वक्त
जबकि सपने देखना
किया जा रहा है निषिद्ध
जारी हो रहे हैं फतवे
सपनों के विरूद्घ।
इस वक्त
जबकि सपने देखना देशद्रोही होना है
मैं
इस स्वप्नवर्जित देश में
सपनों की खेती करना चाहता हूँ।

जानता हूँ हांक दिया जाऊँगा एक दिन
उनकी तरह
जिनके सपनों के पीछे
हत्यारों के झुंड
लगी है पहरेदारी में।
एकदिन उठूंगा नींद से
और देखूंगा
हमारे सपनों को छलनी करने
तानाशाह की फौज खड़ी हैं दरवाजे पर।
वे हमसे हमारा आकाश छीनने आए हैं
वे हमारी नदियों का प्रवाह छीनने आए हैं
वे हमारे पहाड़, हमारा जंगल छीनने आए हैं
वे पेड़ों की छाया, फूलों की सुगंध छीनने आए हैं
 वे हमारे बच्चो की मसूमीयत
उनकी हँसी छीनने आए हैं
वे हमारे शब्द छीनने आए हैं।

इस स्वप्न वर्जित समय में
जबकि विकृत की जा रही हैं
हमारे बच्चों के किताबों की भाषा
और उगाई जा रही हैं उसमें
धर्म के विष-बेल।
इस वक्त
जबकि वे तोड़ लेना चाहते हैं
हमारी आँखों से सपने
मैं
सपनों की खेती करना चाहता हूँ।