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इस हमाम में / राम सेंगर
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					यह बुर्जुआ समाज 
बुर्जुआ लोग, 
बच इनसे 
देंगे सँक्रामक रोग !
जिनका छद्म 
उधड़कर 
झूल रहा 
पूरा-पूरा, 
यही वक़्त है 
तोड़ताड़ सब 
इनका तनपूरा, 
खिखियाकर मुक्कों से 
कब तक
पीटेगा विवेक का माथा 
करने नए प्रयोग !
किसे पड़ी है 
क्या कुछ है 
उस पार अन्धेरे के, 
हवा दचक्के मारे 
हिलते 
खूँटे डेरे के, 
इस हमाम में 
सब नँगे हैं 
ज़बरन जँघा-पीट मची है 
तने अज़ब दुर्योग !
यह बुर्जुआ समाज 
बुर्जुआ लोग, 
बच इनसे 
देंगे सँक्रामक रोग !
 
	
	

