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इस हृदय के वेदना की थाह मत लो / अभिज्ञात

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गीत यदि अच्छा लगे तो गुनगुनाओ
दर्द कुछ गहरा लगे तो वाह कह दो
बस, यही सम्बंध रखना हो सके तो
इस हृदय के वेदना की थाह मत लो

तुम पूनम की चांदनी, दूधिया धवल
मावसी कलिमा का मैं शरणार्थी हूं
तुम किसी देवी की प्रतिमा हो यक़ीनन
मैं तो केवल इक बुझी सी आरती हूं
हां, भला कैसे मिले विपरित दिशाएं
हर नियम का एक निश्चित सा नियम है
मेल होना है तो फिर होता रहेगा
शेष तो तन का अभी लाखों जनम है
इसलिए तुमसे ये आग्रह है कि फिर से
कल्पना में भी अभागी चाह मत लो।


हर सुबह कुछ पीर से की रास मैंने
सांझ को है कुछ व्यथाएं ब्याह लाया
आंख में अंजन लगाकर आंसुओं के
हां पुरस्कृत हो गया मैं, आह लाया
भीड़ में इक बार जो मुझको मिला था
उस अजाने मीत को मैं खोजता हूं
जिसमें जन जीवन का दर्पण मिल गया था
उस झलकते गीत को मैं खोजता हूं
इस पथिक की राह अनजानी अनूठी
व्यर्थ है तुम इस पथिक की राह मत लो।


देखना है तम के कदमों का निशां
कब तलक मिटता नहीं अंगार से
कब तलक जग खेल सीखेगा नहीं
जो सिखाना चाहता मैं प्यार से
मैं न जाने कब तुम्हारा हाथ चूमूं
कब पपीहे को लगे पी की लगन
यायावर इन कल्पनाओं की उड़ानें
पा सकेंगी जाने कब किस क्षण थकन
है किसी बाती से भी तीखी जलन
मेरी मानो तुम प्रतीक्षा दाह मत लो।