इहो धर्मे थिक / अविरल-अविराम / नारायण झा
छै चैन कहाँ, दिन-रैन जगैए
देखि सपन, जीवन अपन खेपैए।
रहि टुटली मड़ैया दिवस जे काटल
सीबि राति- दिन धोकरा जे फाटल
खुआ मलीदा एकरे खुअबितौ
संसार लेल खटिते जे रहैए।।
छै चैन कहाँ, दिन-रैन जगैए
देखि सपन, जीवन अपन खेपैए।
कS चाम दग्ध घामे लथपथ
खेते सS जीवन छै लटपट
ओकर तरबामे तेल रगड़ितौ
आनक चिन्ते जे परान हतैए।।
छै चैन कहाँ, दिन-रैन जगैए
देखि सपन, जीवन अपन खेपैए।
खटि करखानामे देह जरा कS
किशिम-किशिमक वस्तु बना कS
बैसल पॉजर ओकर उठबितौ
अपन ओरदा जे घटबैए।।
छै चैन कहाँ, दिन-रैन जगैए
देखि सपन, जीवन अपन खेपैए।
पजेबा- गिलेबा उघि माथे आनय
छातीक बल पर रिक्शा टानय
दूध छाली सS कोढ़ मोटबितौ
देहक शोनित जे जड़बैए।।
छै चैन कहाँ, दिन-रैन जगैए
देखि सपन, जीवन अपन खेपैए।
भोगय जे नाना सुख नारी-नर
सभटा निरभर अछि ओकरे पर
हम ओकर पएर पुजितौ
जकरामे भगवान बसैए।।
छै चैन कहाँ, दिन-रैन जगैए
देखि सपन, जीवन अपन खेपैए।