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ईख नलाई के फल पाई / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ईख नलाई के फल पाई
ईख नलाई मन्ने कंठी घड़ाई
ले गया चोर बहू के सिर लाई
सुसरा तै लडूंगी पीठ फेर कै लडूंगी
आजा हे सासड़ तन्ने डंडा तै घडूंगी
जेठ तै लडूंगी दिल खोल के लडूंगी
आजा हे जिठानी तेरा धान सा छउूंगी
देवर तै लडूं घूंघट खोल कै लडूंगी
आजा हे द्यौरानी तन्नै खूटिया धरूंगी
पड़ोसी तै लडूंगी दिल खोल के लडूंगी
आजा हे पड़ोसन तन्नै पाड़ के धरूंगी
बालम तै लडूंगी महलां बैठी हे लडूंगी
आजा हे सोकन तेरा डंडा बित्ती घडूंगी