ईदगाह अकबराबाद (आगरा) / नज़ीर अकबराबादी
है धूम आज मदरसओ ख़ानकाह<ref>फ़क़ीरों और साधुओं के रहने का स्थान, आश्रम</ref> में।
तांते बंधे हैं मस्जिदे जामा<ref>वह मसजिद जिसमें जुमा, शुक्रवार, की नमाज पढ़ी जाती है, जामा मसजिद</ref> की राह में।
गुलशन से खिल रहे हैं हर इक कज कुलाह<ref>टेढ़ी टोपी पहनने वाला, माशूक</ref> में।
सौ-सौ चमन झमकते हैं एक-एक निगाह में।
क्या-क्या मजे़ हैं ईद के आज ईदगाह में॥1॥
झमका है हर तरफ़ का जो आ बादला ज़री<ref>दो कपड़ों के नाम, बादला-सोने और चांदी के चिपटे चमकीले तार जो गोटा बुनने और कलावत्तू बटने के काम आते हैं, ज़री का कपड़ा जो रेशम और चांदी के तारों से बुना जाता है</ref>।
पोशाक में झमकते हैं सब तन ज़री-ज़री<ref>सुनहरी</ref>।
गुलरू<ref>फूल जैसे सुन्दर सुकोमल मुख वाली नायिका</ref> चमकते फिरते हैं जूं माहो<ref>चांद</ref> मुश्तरी<ref>वृहस्पति, यह छठे आसमान पर है</ref>।
हैं सबके ईद-ईद की दिल में खुशी भरी।
क्या-क्या मजे़ हैं ईद के आज ईदगाह में॥2॥
आते हैं घर सेस अपने जो बन-बन के कज कुलाह।
सहने चमन है जितनी है सब सहने ईदगाह।
छाती से लिपटे जाते हैं हंस-हंस के ख़्वामख़्वाह।
दिल बाग<ref>बहुत खुश</ref> सबके होते हैं फरहत<ref>खुशी</ref> से वाह-वाह।
क्या-क्या मजे़ हैं ईद के आज ईदगाह में॥3॥
कुछ भीड़ सी है भीड़ कि बेहदो बेशुमार।
खल्क़त<ref>जनता</ref> के ठठ के ठठ हैं बंधे हर तरफ़ हज़ार।
हाथी व घोड़े, बैलो, रथ व ऊंट की कतार।
गुलशोर बाले भोले खिलौनों की है पुकार।
क्या-क्या मजे़ हैं ईद के आज ईदगाह में॥4॥
पहने फिरें हैं शोख़<ref>चंचल, प्रिय पात्र</ref> कड़े और हंसलियां।
फूलों की पगड़ियों में हैं शाखे़ उड़सलियां।
कमरें सभों ने मिलने की ख़ातिर हैं कस लियां।
मिलते हैं यूं कि छाती की कड़के हैं पसलियां।
क्या-क्या मजे़ हैं ईद के आज ईदगाह में॥5॥
आते हैं मिलते-मिलते जो आज़िज परीरुखां<ref>परियों जैसी शक़्ल सूरत वाले</ref>।
देते हैं मिलने वालों को घबरा के गालियां।
तिस पर भी लिपटे जाते हैं जू गुड़ पे मक्खियां।
दामन के टुकड़े उड़ते हैं फटती हैं चोलियां।
क्या-क्या मजे़ हैं ईद के आज ईदगाह में॥6॥
हैं मिलते-मिलते तन जो पसीनों में तर बतर।
मिलने के डर से फिरते हैं छिपते इधर-उधर।
छिपते फिरें हैं लोग भी जाते हैं वह जिधर।
ठट्ठा हंसी व सैर तमाशे जिधर जिधर।
क्या-क्या मजे़ हैं ईद के आज ईदगाह में॥7॥
हैं करते वस्ल शहर के सब खु़र्द<ref>छोटे</ref> और कबीर<ref>बड़े</ref>।
अदना<ref>साधारण</ref>, गरीब, अमीर से ले शाह ता वज़ीर।
हर दम गले लिपट के मेरे यार दिल पज़ीर<ref>दिलपसंद</ref>।
हंस-हंस के मुझ से कहता है यूं क्यूं मियां ‘नज़ीर’।
क्या-क्या मजे़ हैं ईद के आज ईदगाह में॥8॥