भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ईमाँ को एक बार भी जुम्बिश नहीं हुई / शहजाद अहमद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ईमाँ को एक बार भी जुम्बिश नहीं हुई
सौ बार कूफ़ियों के कदम डगमगा गए

हम इस ज़मीन को लाये हैं आसमानों से
और इन्तिख़ाब किया है कई जहानो से

यही जबाब मिला अब वतन ही सब कुछ है
बहुत सवाल किये हमने नुक्तादानों से

ख़ुदा से उसका करम मांगते हैं हम 'शहजाद'
चलें तो आगे निकल जाएँ कारवानो से