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ईमानदार वानप्रस्थ को पाती / राहुल कुमार 'देवव्रत'

एक अरसे की जकड़ लिए
पंखों की मालिश करता समय
उड़ने का सामान जुटाए बैठा है फुनगी पर
डालें पकड़ के बैठी हैं अंतिम उड़ान
... उड़ जाएंगी

कि नियत समय पर ख़िंच जाती है हर रस्सी
टूटना ... लौटना कोई नई बात तो नहीं

लौटोगे फिर वहीं
अपने सफर की शुरूआत पर यक़ीनन
किंतु हर सफ़र का शून्यकाल शून्य नहीं होता

समय रुकता नहीं ...
... ना रुके ... मेरी बला से
तुम बुनते रहना कपाल पर स्वप्न
और टूटती नलिकाओं में
फूंकते रहना प्राण
तुम्हारे मुंह से झरते शब्द
नंगे ज़िस्म को वस्त्र देते जान पड़ते हैं
मन की चाहरदीवारी पर सजती दिवाली
और शोणित के साथ बहते ख़ुशरंग चित्रों को
देते रहना पांव

समय रुकता तो नहीं
पर इस बीतते समय को दम साधे देखता
वो सूक्ष्म समय ठहर जाएगा
मैं जानता हूँ