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ईमान को तुम सर पटकने दो / प्रेम कुमार "सागर"
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क्योँ वह बुजदिलों को पास में हर बार रखता है
भला घर की हिफाजत को भी कोई सियार रखता है|
अरे इस देश में ईमान को तुम सर पटकने दो
नालायक ही यहाँ पर कब्जे में सरकार रखता है |
जबरन पा नहीं सकता कोई चैन औ' मोहब्बत को
कभी घाव चीड़ने को वैद्य क्या तलवार रखता है |
भ्रमर को प्यार है गुल से तो रस वो खूब चुसेगा
कहीं नुकसान लेकर भी कोई व्यापार रखता है |
भरोसा रख जरा 'सागर', अमन खुद को दोहराएगा
बहारों से मिलन का चमन भी दरकार रखता है