Last modified on 25 मई 2010, at 01:17

ईमान गड़बड़ी में है / शमशेर बहादुर सिंह

ईमान गड़बड़ी में है दिल के हिसाब में
लिक्खा हुआ कुछ और मिला है किताब में

दिल जिनमें ढूंढ़्ता था कभी अपनी दास्ताँ
वो सुख़ियाँ कहाँ हैं मुहब्बत के बाब में!

ऎ दिलेनवाज़ पहलू ही जब दिल के और हों,
क्या ख़िलवतों में लुत्फ़ धरा क्या हिजाब में!

उस आस्ताँ तक हमको बहारों में ले के जाओ
जिस पर कोई शहीद हुआ हो शबाब में!

रचनाकाल : 1943