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ईश्वर और आदमी की बातचीत / लीलाधर जगूड़ी
Kavita Kosh से
जानते हो यह मूर्ति मेरी है
और कुछ लोग इसे पूजने आ रहे हैं
तुम्हें क्या चाहिए ? क्या तुम्हारा भी व्रत है ?
नहीं नहीं, यह मूर्ति मेरी है और यह बिक चुकी है
ख़ुद को तो मैं तुमसे भी ज़्यादा जानता हूँ
संयोग से जो पाँचवी योजना में नहीं
वह तुम कैसे दे सकते हो ?
जबकि मेरा कोई व्रत नहीं; फिर भी मैं भूखा हूँ
प्रश्न केवल मूर्ति का नहीं यह मेरे घर का भी सवाल है
बताओ कि मैं कहाँ निवास करूँ ?
तुम किताबों से उठकर बार-बार यहाँ क्यों चले आते हो
हमने तुम्हें कलैंडरों पर दे दिया है
जाओ, जूते और घड़ियों के ऊपर रहो
आदमियों के ऊपर इस वक़्त ख़तरा है ।