भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ईश्वर का दुःख / संजय अलंग
Kavita Kosh से
मौन नहीं है वह
न ही तूती नक्कार खाने की
मन्दिर के घंटों की गूँज के बीच
अंतर्नाद बन गई है, उसकी वाणी
इसे पुजारी ही ईश्वर तक पहुँचाएगा
चढ़ी मिठाईयों से कुछ मीठापन
उसके लिए भी लाएगा
तब सम्प्रेषणता का इतिहास लिखा जाएगा
अर्पित वाणी मात्र लगे प्रलाप
उसे नहीं हो यह संताप
इसलिए बताया जाएगा
मन्दिर के बाहर आदमी की
गंदी, लीचड़, बदबूदार, भीख मांगती कृशकाया पर
मिठाईयों, फूलों और पुजारियों से
दबे होने की व्यस्तता के बावजूद
ईश्वर को बहुत दुःख है