ईश्वर की चौखट पर. / शैलेन्द्र चौहान

तमाम प्रार्थनाएँ
रह गईं अनुत्तरित
जीवन और प्रेम
के लिए
जो की गईं

सारी कल्पनाएँ
भाप बन उड़ीं
अग्निधर्मा
यथार्थ से छूकर

सभी सद्भावनाएँ
टपकीं पेड़ से
पके हुए
फलों की तरह

जीवन में
फ़िलर बनकर
आई खु़शियाँ
तलाशती संभावनाएँ
किस पन्ने पर
किस कॉलम में
किस जगह
चिपकाई जा सकें

छलक रहा है हर्ष
हँस रहे हैं जो
उनकी पोर-पोर से
पुराने तार-तर हुए
कपड़ों पर
नया दमकता पैबंद
लग रहा है दयनीय
और हास्यास्पद
बहुत कोशिशें कीं
पैबंद देख
खुश होने की

चाहा है अक्सर
फूलों और बच्चों को
देखकर आनंदित होना
दूसरे समानधर्मा
मनुष्यों की खुशियों से
एकाकार हो
क्षण-भर
आनंदित हो जाना

चाहा है जीना
संभावनाओं और
सद्भावनाओं को
महसूसते हुए
कल्पनाओं में

शुभ्र वस्त्रों में सजी
चपल सुंदर
परियों और
सफेद घोड़े पर
बैठे राजकुमार से/समरस हो
घड़ी-दो घड़ी
जीवन में/की थीं बहुतेरी
प्रार्थनाएँ

न केवल
अस्वीकृत रहीं वे
तरह-तरह से
पीड़ा और दंश का
अनुभव भी दिया

कहीं का न रखा
इस भ्रम ने
कि धर्म और ईश्वर की अंधश्रद्धा
मन को मुक्त
कर सकती है दुखों से

इतिहास में दर्ज़ हैं
वे सारी कहानियाँ
जब ईश्वर की
चौखट पर
तोड़ दिया दम
जीवन और प्रेम के लिए
प्रार्थनाएँ करते हुए
मनुष्य ने।

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