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ईसुरी की फाग-21 / बुन्देली

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   ♦   रचनाकार: ईसुरी

रोजई मुस्का कें कड़ जातीं
हमसै कछू न कातीं
जा ना जान परत है दिल की
काये खों सरमातीं
जब कब मिलैं गैल खोरन में
कछू कान सौ चातीं
ना जानै काहे कौ हिरदो
कपटन सोउ दिखातीं
ईसुर कबै कौन दिन हू है
जबै लगाबै छाती।

भावार्थ
ईसुरी अपनी प्रेयसी से संवाद न होने पर कहते हैं — तुम रोज मुस्कुरा कर निकल जाती हो और मुझसे कुछ कहती नहीं हो। पता ही नहीं लगता तुम्हारे दिल में क्या है, क्यों शर्माती हो? जब कभी गली-कूचों में मिलती हो तो लगता है कि कुछ कहना चाहती हो। न जाने तुम्हारा ह्रदय किसका बना है, मुझे तो लगता है तुम कपटी भी हो।
ईसुरी कहते हैं — वह दिन कब आएगा जब मैं तुम्हें अपने ह्रदय से लगाऊँगा...?