भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ईसुरी की फाग-27 / बुन्देली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: ईसुरी

जब सें गए हमारे सईयाँ
देस बिराने गुइयाँ।
ना बिस्वास घरें आबे कौ
करी फेर सुध नइयाँ।
जैसो जो दिल रात भीतरौ
जानत राम गुसैयाँ।
ईसुर प्यास पपीहा कैसी
लगी रात दिन मइयाँ।

भावार्थ
महाकवि 'ईसुरी' की विरहिणी नायिका अपनी वेदना का वर्णन करते हुए कहती है — हे सखी ! जब से मेरे प्रियतम परदेश गए हैं, तब से ये भरोसा भी नहीं रहा कि वे कभी घर भी आएँगे। उन्होंने मुझे याद तक नहीं किया। मेरे ह्रदय की दशा राम ही जानते हैं। मेरी प्यास पपीहे की प्यास जैसी है, जो हृदय में रात-दिन लगी रहती है।