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ईसुरी की फाग-28 / बुन्देली

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   ♦   रचनाकार: ईसुरी

मिलकै बिछुर रजउ जिन जाओ
पापी प्रान जियाओ।
जबसे चरचा भई जाबे की
टूटन लगो हियाओ।
अँसुआ चुअत जात नैनन सैं
रजउ पोंछ लो आओ।
ईसुर कात तुमाये संगै
मेरौ भओ बिआओ।

भावार्थ
महाकवि 'ईसुरी' अपने विरह का वर्णन करते हुए कहते हैं — रजउ, तुम मिलकर बिछड़ मत जाना। मेरे पापी प्राणों को जी लेने दो। जबसे तुम्हारे जाने की चर्चा सुनी है मेरा दिल टूटने लगा है। मेरे आँसुओं को तुम्हीं आकर पोंछ दो। ईसुर कहते हैं कि तुम्हारे साथ मेरा ब्याह हुआ है।