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ई अजगुत कोन / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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ई अजगुत कोन पुरनके सबटा रंग छै’।
कने-मने किछु भेद छैक जे,
दुहुक फराके वेद छैक जे,
दुहुक माँझमे एक जाल
आ ताहूमे जे छेक छैक से
अद्भुत कोन, असलके सबटा ढंग छै’।

कमसँ कम सब देशी अछि तँऽ?
उजरा वस्त्र स्वदेशी अछि तँऽ?
गनले गूथल भोग करओ
तैओ पहिनेसँ बेसी अछि तँऽ?
मानि लिअऽ जे बाँचल एक अलग छै’।

गप्पक बोर खाइ’ छै’ माङुर,
गड़ल छैक बुधियारक चाङुर,
बनल योजना-पूल पाँचटा
योजनसँ बेसी दू आङुर,
ताहीपर तँ भीतर जोर उमंग छै’।

जनता की, जनता थिक गोबर,
नेता लोकनि सजाबथु कोबर,
दुर्लभ सकल वस्तु सुलभे अछि
रहय टेंटमे केवल दोबड़,
सरकारी गाड़ी भय गेल उटंग छै’।

अधिकारी छी सब मतदानक,
बेटा सब क्यो छी भगवानक,
पुनि सरकारी राशन चाही
ई हिस्सख थिक महा-भयानक,
मतलब की जे ककरो हेतु पलंग छै’।

सर्वोदयकेर फाँकू अँकुरी,
वस्त्र-दान लय काटू टकुरी,
नव-उन्नति बिजली-घर देखू
बान्हू पाथे’ पहुँचू सकुरी,
यन्त्र देखि जन-तन्त्रक के नहि संग छै’।

नव निर्माणक हूलिमालिमे,
घोड़ा-फर्जीकेर चालिमे,
भेद न किछुओ मानक चाही
हलुआ-पूरी भात-दालिमे
रंग आइ संसार भरिक बदरंग छे’।

रचना काल 1956 ई.