ई आश्चर्यक बात न कोनो / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
ई आश्चर्यक बात न कोनो
आब एहन भ्रम भेल करै छै,
शत-सहस्त्रनहि,
उदाहरणमे आइ करोड़ो भेटि सकैए।
लोक बुझै छै - मुइल सड़ल अछि,
हम अपनाकेँ मानी जीवित।
जीवन्तक जे लक्षण सब छै
श्वास तथा प्रश्वास प्रक्रिया प्रथमे लक्षण
से चलिते अछि।
दोसर लक्षण थिक भोजन
से डँड़ाडोरि कऽ ढील तण्डुल-ध्वंस करै छी।
लोभ-मोह-मत्सरता सबमे अगुअयले छी।
गतिक प्रश्न अवशिष्ट रहल
से गाछ-वृक्ष ओ लता-गुल्म सब
कहाँ चलैए,
तँ की ओ मुइल-सड़ल अछि?
फूल, फऽडमे ककरोसँ पछुआयल नहिए।
गति नहि अछि, दुर्गति तँ आछि ने?
दुर्गतिओमे ‘गति’ तँ पद छैके
प्रश्न रहल उपसर्गक, से तँ
जेहन करब संसर्ग
रहत उपसर्गो तेहने।
तेँ विचारि कऽजँ देखी
तँ बूझि पडै़ छै - छी तँ जिबिते,
ग्लानि-गरल जे भेटि रहल अछि
उठा-उठा सबटा छी पिबिते।
एहने भ्रममे पड़ल
मैथिली-भाषी
मिथिलावासीकेँ
क्यौ देखि सकैए।
बूझि कण्ठकेँ बीहरि
बिषधर पैसि गेल अछि,
बाहरसँ मोटका शीशा वाला चश्मा अछि
भीतर दूनू आँखि निपट्टे बैसि गेल अछि।
फेर गाल पर पाँचो आङुर निखरि उठल अछि
तथा नरेटी पंजामे सकसका रहल अछि।
तैयो अपनाकेँ
बुझैत छी जे
छी जिबिते,
ग्लानि-गरल
आबहु जे भेटत
रहब उठा कऽ एहिना पिबिते।