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ई कोनो कविता नहि छी / दीपा मिश्रा

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ई कोनो कविता नहि छी
आने कोनो सिनेमाक
अतिशय भावुक करैबला दृश्य
जाहिमे एकटा डॉक्टर मरीजक चंद बचल खुचल दिनमे ओकर जीवटताक कथा लिखिकेँ पुरस्कृत होइए
 
ई घटना सत्य थिक जे
हमर घरक एकटा कोठलीमे रोज़ घटैत हम देखैत छी
मृत्युक दिस प्रति क्षण बढ़ैत
हमर माए शून्य भेल जा रहल छथि
ओ गुम भेल छत दिसि तकैत छथि आ
हुनक दुनू आँखिसँ नोरक धार टघरैत रहैत छन्हि
हम लग जाके ओकरा पोछैत छी आ अपन मुँह भीजि जाइए
हम कखनोकेँ हुनका बिगड़ैत छी, कखनो मनबैत छी जे ओ कोहुना
एकटा छोटो छिन कौर खा लैथ
 
कखनो-कखनो ओहि कोठलीसँ तीव्र दुर्गन्ध अबैये जे
हमर भीतर तक पैसि जाइए
माँक मल मूत्र साफ़ करैत हमर पिता अचानक हमरा देवदूत सदृश देखाए लगैत छथि
जे बिना कोनो संकोचक ओ सब किछु करैत छथि जकरा करबालेल सोचिओ के
करेज खोखरा जाइत छै लोकक
हुनका ऊपर एके संग क्रोध आर मातसर्यक भाव हमरा भीतर जागि जाइए

हम निर्विकार सन शून्य दिस तकैत ओहि नग्न शरीरकेँ देखैत छी
जेकर देहक सब भाग संस्कारक सुंदर साड़ीसँ झांपल रहैत छल
जे दिनमे तीन तीन बेर
नहाइत छलीह हुनका
नहेबाक हमर सभक सबटा प्रयास व्यर्थ जा रहल अछि
ओ नहि स्नान करती
हुनक कहब ओ साफ़ सुथरा छथि,
झूठ मात्र हमर पिता आ हम बजैत छी

फ़िल्म सन कतौ किछु नै भ' रहल
मृत्युक आहटकेँ रोज़ अनुभव करब एकटा डरसँ घेर दैये हमरा सबकेँ
हम पिता दिस देखैत छी
ओ दुर्गा पाठ क' रहल छथि
जखैन की हुनको बूझल जे
माए आब बेसी दिन संग नै रहतैथ
हुनका कहिओ कनैत नै देखने छी आइधरि
एकबेर फेर हम ध्यानसँ हुनका दिस देखैत छी
आँखिक कोर पर कहुनाकेँ रुकल दू बुन्न नोर हमरा देखा गेल