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ई घेरौंदा जे बनल हे तोड़ दऽ / रामनरेश वर्मा

ई घेरौंदा जे बनल हे तोड़ दऽ
आदमी के आदमी से जोड़ दऽ।
हे खड़ा ई बीच में दीवार कइसन।
पाँव अंगद के अड़ल हे आज अईसन।
जे मिलावट में बनल बाधक हमेसे।
हर तरह से ऊद बेवस्था तोड़ दऽ।
धरम न हे कि धरम के आड़ में।
झोंक देवे कोई केकरो भाड़ में।
आदमियत से अलग कोई हे अगर,
ऊ धरम के जड़ीये जड़ से कोड़ दऽ।
एक लेहू हाड़ एक्के चाम हे।
एक हे आकास धरती धाम हे।
फिर अलग इनसान के कतार कइसन,
धार जे हिगरल सभे के जाड़ दऽ।
ई घेरौंदा जे बनल हे तोड़ दऽ।
आदमी के आदमी से जोड़ दऽ।