भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ई छैला अवध के अन्हरिया / करील जी
Kavita Kosh से
लोक धुन। ताल दादरा
ई छैला अवध के अन्हरिया,
हमार सिया पूनम अँजोर॥धु्रव॥
सिय-छवि-छाह छअत वसनन्हि छनि।
हरिहर होत सँवरिया, हमार सिया.॥1॥
घुँघट-ओट छटा छिन निरखत,
बिरसत देन भँबरिया, हमार सिया.॥2॥
सहमि सकुचि झूकि उझकि चकित चलि।
चाहत छवि दृग भरिया, हमार सिया.॥3॥
मनि खंभन्ह प्रतिबिम्ब कबहूँ लखि।
टारत नाहिं नजरिया, हमार सिया.॥4॥
भाँवर देत जोरि अनुपम-छवि।
लखि ‘करील’ बलिहरिया, हमार सिया.॥5॥