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ई त दिअना ह जिनगी के जरबे करी / धीरेन्द्र बहादुर 'चाँद'

ई त दिअना ह जिनगी के जरबे करी
कहियो मन के भरमवा त मेटबे करी

अब गन्हाइल ई पोखर बदले के बा
बा जे मछरी सड़लकी ऊ डहबे करी

हकवा हड़पे के आदत में जे बा पड़ल
लोगवा बहियाँ मरोड़ि हकवा लिहबे करी

बनि के अभिमन्यु व्यूहवा के तूड़े के बा
जिनगी के हर पहेली सुलझबे करी

नक्शा हालात के अब मेटावे के बा,
मोह टूटी त हर घात घटबे करी

जब अन्हरिया दरद बनि के टीसे लागी
भेद के हर मुखौटा खुलबे करी