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ई धरती के अंगना में / राम सिंहासन सिंह

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भारत जइसन देस कहाँ हे ई धरती के अंगना में।
येकर चमकईत रूप सुहावन सब देखऽथ सपना में।।
राम-किसन के पगधूरी से येकर देह पवितर हे।
गाँधी-सुबास, टैगोर-तिलक भी येकरे वीर सपुतर हे।।
बुद्ध-महावीर सरहप्पा तो ग्यान के जोत जरवलन।
कर्न-दधिचि, हरिस्चन्द्र भी येकर मान बढ़वलन।।
त्याग-तपस्या के मूर्ति ई देस के सुन्दर अयना में।
भारत जईसन देस कहाँ हे ई धरती के अँगना में।।
मौलाना आउ वीर भगत के ई धरती हे थाती।
लक्ष्मी बाई जहाँ जरवलन देस प्रेम के बाती।।
भारत मैया के नारी हथ अगने के फुलवारी।
यहाँ के बच्चा-बच्चा सब लह-लह चमकत चिनगारी।।
अस्त्र-सास्त्र के ज्ञान मिल हे यहाँ कोख आऊ पलना में।
भारत जईसन देस कहाँ हे ई धरती के अंगना में
यहाँ के धरती उगल हे सोना-चाँदी आऊ मोती।
मेवा आउ मिष्टान लग हे छूछे नीमक रोटी।।
अंकुरी खा कचरस पी के मनवां हो जा हे हरिअर।
बिना तेल दियना बाती जोत जल हे घर-घर।
सतुआ खा किसान-किसानी मगन रह हे अपने में।
भारत जईसन देस कहाँ हे ई धरती के अंगना में।।
हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई सब हथ भाई-भाई।
बाँट-बाँट के खा हथ ई उत्सव में खीर-मिठाई।।
हाली-छठ या ईद मोहरम चाहे कोई त्योहार हो।
आपस में सब गला मिल हथ भर-भर के अंकवार हो।।
निमल जईसन मन ईनकर एक लोटा एक बधना में।
भारत जईसन देस कहाँ हे ई धरती के अंगना में।।