ई मेघ की छेकै / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
ई जे दूर-दूर तलक
भादॅ के फैललॅ होलॅ मेघ छै
ई आरो कुछुवे नै छेकै प्राण
तोरे चिर प्रेयसी
जनम-जनम रॅ सहचरी
जेकरा तोंय बहुत चाहलॅे छौ
वही साँवरी के ई देह छेकै
जें पावी गेलॅ छै विस्तार
कि फैली गेलॅ छै आकाशॅ के पोर-पोर में
तोरा याद होथौं
हों, तोरा याद होथौं
कि तोंय हमरा नील नव देहॅ केॅ
सरंगॅ के कोना-कोना में छितरैलॅ
जमुनिया मेघॅ सें उपमा देतेॅ हुवेॅ
‘साँवरी’ नाम सें पुकारलेॅ छेलौ
आरो आय तोरॅ साँवरी
वही यादॅ में डुबलॅ
तोरा नै पावै के पीड़ा केॅ समेटलेॅ
खाड़ी छै
वही सांवरा मेघ के सामना में
जे हमरॅ देह होय गेलॅ छै।
आरो ई जे बीचॅ-बीचॅ में
बिजली चमकी जाय छै
हे हमरॅ मीत!
सच कहै छियौं
ई हमरे मनॅ के आशा किरण छेकै
आरो ई जे ठनका के ठनक होय छै
हमरे हृदय रॅ चींख
विरह-वेदना सें भरलॅ-तपलॅ मनॅ के कोलाहल छेकै
जें बोलाय रहलॅ छौं तोरा
हाँक पारी-पारी केॅ
चीखी-चीखी केॅ
कानी-कानी केॅ
दहाड़ मारी-मारी केॅ
कतना वर्षॅ से
कतना युगॅ सें
भादॅ के ई अन्हरिया राज
जेकरा में सूझै नै छै हाथॅ केॅ हाथ
दीखै छै खाली अन्हारे-अन्हार
अन्हारॅ के कैन्हॅ ई अजगुत विस्तार
आरो हेन्हॅ बेरा में
आय हम्में
आपनॅ सब कुछ तोरा दै दै लेॅ चाहै छिये।
के जानै छै
ई जिनगी फेरू आब’ या नै आबेॅ
ई मिट्टी केॅ देह फेरू मिलेॅ या नै मिलेॅ