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ई शहर / सरोज सिंह
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का भईल जे सुने के खरी-खोटी देला
इ सहरवे हs जे पेट के रोटी देला
जाके मिल में तू लाख बुनs कपड़ा
ढके खातिर देह, खाली लंगोटी देला
मेहनत कइ के इहाँ नईखे कुछ हासिल
जदि बेचs ईमान तs रक़म मोटी देला
चौउकाचउंध देख, हसरत जिन पाल
पसारे के पाँव चादर बहुत छोटी देला
इहाँ गरीबन के रोटी मिले भा न मिले
अमीरन के कुकुरन के चांप-बोटी देला
आसान नईखे इहाँ चैन के जिनगी "रोज़"
जिंदा रहे खातिर रोज नया कसौटी देला