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उंगलियाँ और स्याही / रति सक्सेना
Kavita Kosh से
मेरी उंगलियों में अकड़न है
अकड़न का सम्बन्ध पेन पकड़ने से कतई नहीं
पेन और कागज को
कभी की भुला चुकी हैं मेरी उंगलियाँ
पेन की बात की तो स्याही याद आ गई
स्याही केवल रंग नहीं, स्वाद भी थी
पेन की जिब खींचते या दाँतों से ढक्कन खोलते वक्त
जीभ से होते हुए हलक तक पहुँचने वाली स्याही
कागज और दीमाग के बीच
विकट खुशबू का
एक पुल बना दिया करती
और फिर नाचना शब्दों पर
खुशबू, रंग, और स्वाद के साथ
शब्द भी कहीं गुम हो गए
उंगलियाँ सुन्न है
मेरे दीमाग की तरह
की-बोर्ड के तख्ते पर
अक्षर फीके पड़ रहे हैं