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उखड़ी हुई नींद / गिरधर राठी
Kavita Kosh से
सच वह कम न था
नींद उखड़ी जिससे
न ही यह कम है -
उखड़ी हुई नींद
जो अब सपना नहीं बुन सकती
अंधेरे में
या रोशनी जलाकर
जो भी अहसास है
सच वह भी कम नहीं है
पर नींद वह क्या नींद
जो बुन न सके सपने !
कैसी वह भाषा
जो कह न सके -
देखो !