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उगल बाड़े चनरमा नीक घर लागे / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
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उगल बाड़े चनरमा नीक घर लागे
उजाला से मगर चोरन के डर लागे
बहल अइसन हवा, उजड़त गइल सब गाँव
बसे खातिर सुहावन अब शहर लागे
खपत अतना बढ़ल पेट्रोल-डीजल के
हवा के साथ में फइलत जहर लागे
विषइला साँप के मुँह में जहर होला
मगर इन्सान विष से तर-ब-तर लागे
सभे दहशत में जिनगी जी रहल बाटे
इहाँ मउवत के साया हर पहर लागे