उगि गेल चँदबा, घुरुमी गेल हे अँखिया / अंगिका लोकगीत
रात में दुलहे को झपकी आने लगी। सास ने उससे फूल के सेज पर सोने का अनुरोध किया, लेकिन दुलहे ने सास से विनम्रता से कहा- ‘सासजी, मैं इस फूल के सेज पर कैसे सोऊँ, जब मेरे पिता वहाँ बरात में खुले आकाश में ओस से भींग रहे हैं।’ सास ने दुलहे को समझाया- ‘बेटा, मैं तुम्हारे पिता के लिए बँगला छवा दूँगी।’ फिर सबेरा होने पर जब दुलहे से दतवन करने का अनुरोध हुआ तो उसने कहा- ‘यह कैसे संभव है, जब कि मेरे भैया बरात में धूप में कुम्हला रहे हैं’ सास ने उत्तर दिया- बाबू, आपके भैया को मैं सोने के मूठवाला छाता दूँगी, जिससे वे बरात सजायेंगे।’ इस गीत में जहाँ सास दुलहे की सुख सुविधा का विशेष ध्यान रखती है, वहाँ दुलहा अपने परिवार के लोगों को प्राथमिकता देने को कहता हैं’
उगि गेल चँदबा<ref>चाँद</ref>, घुरुमी<ref>आँखें नींद से घूमने लगीं</ref> गेल हे अँखिया।
अरे सूती रहु सुन्नर बर, फूल केरा सेजिया॥1॥
हम कैसे सूतबै सासु, फूल केरा सेजिया।
बाबा साहेबजादा सासु हे, ओसे<ref>ओस से; शबनम से</ref> भीजै सारी रतिया॥2॥
बाबा के देबै बाबू, बँगला छराइये<ref>छवाना; छाजन करवाना</ref>।
ओहि रे बँगलबा, बीततै सारी रतिया॥3॥
उगि गेल सूरुज, खुलिय गेल अँखिया।
करु दँतबनियाँ दुलहा, माली फुलबरिया॥4॥
हम कैसे करबै सासु, मुख दँतबनियाँ।
भैया साहेबजादा सासु, धूपे मौलाय<ref>मुरझा जाना</ref>गेल॥5॥
भैया के देबौ बाबू, सोना मूठी छतबा।
ओहे छतबा लै हे, सजैतौ बरिअतिया॥6॥