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उगि गेल चँदवा, छपित भेल हे सुरूजा / मगही
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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
उगि गेल चँदवा, छपित<ref>छिप गया, तिरोहित हो गया</ref> भेल हे सुरूजा<ref>सूर्य</ref>।
बइठहू न<ref>बैठो न, अर्थात बैठो</ref> दुलरइता दुलहा, फूल केर हे सेजिया॥1॥
कइसे हम बइठू हे सासु, फूल केर हे सेजिया।
मोर दादा साहेब भींजत<ref>भींगते</ref> होइहें, चारो पहर रे रतिया॥2॥
दादा के देबो रे दुलहा, सोनामूठी<ref>सोने की मूठवाला</ref> रे छतवा<ref>छता, छत्र</ref>।
छतबे इड़ोते<ref>आड़ में ओट में</ref> रे दादा, चलत बरियतिया<ref>बराती</ref>॥3॥
शब्दार्थ
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