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उगी गेलै वैठा ही चतरा के काँटों / अमरेन्द्र

उगी गेलै वैठां ही चतरा के काँटोॅ
जहाँ छेलै ऐंगना मेँ तुलसी रोॅ चौरा।

ऐंगन्है नै गमकै, चतूतरो भी गमकै
पुरबयिे ठो नै, पछियारियो भी गमकै
इखनी जहाँ पर कि भाँसे टा उपटै छै
तखनी रहै यैठाँ काशी रोॅ चौरा।

लोटै छै भँक-द्वार-देहरी पर, ऐंगना मेँ
अर्थी के मूँ देखौं आपने ही गौना मेँ
जंगल रोॅ राकस के बास बनी गेलोॅ छै
घर के विरागी-सन्यासी रॉे चौरा।

जीवन रोॅ भीख माँगौ कौनी मुदैया सेँ
जिनगी की मिललोॅ छै कहियो कसैया सेँ
बैठी केॅ जै पर माँय गीता रोॅ पाठ करै
वहीं आय बनलोॅ छै-फाँसी रोॅ चौरा।

आय तेॅ आकाश, वायु, अगनीयो चुप-चुप छै
झाँपै लेॅ धूप-दीप, भूत-प्रेम लुप-लुप छै
धरमॉे के हानि पर ऐतै की देव फनू
सगुनै छै बैठलोॅ-विश्वासी रोॅ चौरा।