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उग आते मरुथल के टीले / कुमार रवींद्र
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मानो मनुआ
कुसुमगली के रहने वाले
बड़े कँटीले
आँख मिली
वे चुभ जाते हैं भीतर तक
उनके दिये घाव
साँसों में जाते पक
और उम्र भर
उसी पीर के कारण रहते
नयना गीले
सोते-जगते
चैन नहीं लेने देते
नस-नस में वे
फूलों की नौका खेते
उनके लेखे
छुवन-गाँव के उनके किस्से
बड़े रसीले
कभी अमावस
और कभी पूनो होते
थकी देह में
नागफनी वे हैं बोते
खँडहर-होते
सीने में हैं उग आते
मरुथल के टीले