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उछलती कूदती चंचल लहरों में / संगीता गुप्ता
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					उछलती कूदती 
चंचल लहरों में
ध्वनि - प्रतिध्वनि होती 
एक छोटी लहर की 
गहरी पीड़ा 
फैलता चला जाता 
क्षितिज का विस्तार 
मैं बिखरती 
तुम्हारी बाहों में 
सिमटती अपनी 
यंत्रणा में 
क्या कहूँ इसे 
क्या नाम दूं ?
मैं तुम्हारे अनुरूप 
तुम 
सागर के प्रतिरूप
	
	