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उजड़ते खेत / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
उजड़ते खेत
खुलती मुठ्ठियां
बंद होते दिमाग
बनते मॉल
कब रूकेंगे!
खेतों पर बनती पक्की सड़के
देश हो गये गाँव
गाँव हो गये शहरी
खेतों की खेती खत्म
झोपड़ें से अनाज खत्म
पीने का पानी खत्म
चेहरे की मुस्कान खत्म
रहने के आवास खत्म
जीने की चाह खत्म
कब रूकेगें?
उजड़ते खेत
खत्म हो गये गाँव !