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उजड़ा चमन हमारा / बाल गंगाधर 'बागी'

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दमन की आग से, उजड़ा चमन हमारा
प्रति क्रांति नीति से, उजड़ा घर हमारा
रंगीन घाटियों से, बिखरा जहाँ हमारा
आकाश गंगा सा हंसता गगन हमारा

आसमां के मुँह से कुछ, शोले न थे बरसे
पर क्या संवारा उसने, अस्मिता हमारा
निगहबानी उसकी, न मेहरबानी उसकी
जलता रहा है सदियो से गुलिस्तां हमारा

भगवान तेरे बंदे, मनुवाद है लुटेरे
मेरा कसूर क्या जो, बने हैं आवारा?
कुटिल नीतियां, शत्रुता सा प्रेम क्यों
अस्तित्व मेरा क्या, सब लुटा हमारा?

तेरा वजूद क्या है, मेरा कुसूर क्या है?
हम देश के वासी, घुसपैठियों का क्या है?
पाखंडियों परचम, झूठों से लहराया
पानी सा रेगिस्तान पे, उछलता मंडराया

जिसका वजूद रेत से, बढ़कर कुछ नहीं है
बालू की भीत पर खड़ा, पाखण्ड कुछ नहीं है
जानवर को मां का, प्यार है जहाँ मिलता
मां को मेरे जानवर से, नीच समझा जाता

पशु समझ मां है बेइज्जत कैसे होती
एक मां की कितनी प्रशंसा है होती
पशु एक मां का अस्तित्व लेके आयी
क्यों मेरी मायी इज्जत न तेरी पायी?