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उजाला तुम्हीं / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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1
मैं सिर्फ दीप
तुम्हीं बाती व नेह
उजाला तुम्हीं।
2( 23-6-21)
1
युगों- युगों से
किसकी है प्रतीक्षा
व्यथित मन!
2
सूना है पथ
खंडित मनोरथ
आ भी तो जाओ!
3
पत्ते खड़के
हवा का झोंका बन
क्या तुम आए?
4
धरा -सा मन
उद्ग्रीव हो तकता
बाट तुम्हारी।