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उजाले से डर जाओगे / योगेंद्र कृष्णा
Kavita Kosh से
एक दिन
अंधकार से नहीं उतना घबराओगे
जितना अपने आसपास के
उजाले से डर जाओगे
हां…
डर जाओगे
हर उस चिराग से
जो सिर्फ़ उजाले में
जल रहा होगा…
अंधेरे से तो फिर भी
बखूबी निकल जाओगे
मारे वहां जाओगे
जहां रौशनी बहुत होगी
चकाचौंध-सी…
उनकी आत्मा से ही
रौशन है ये संगमरमरी इलाका
जो मारे गए थे
तुमसे भी पहले…बहुत पहले…
बहुत सम्भाल के रखना
अपने कदम भी
कि तुम्हारे पुरखे ही यहां
चिरागों में जल रहे होंगे…