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उजाले / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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उम्र भर रहते नहीं हैं

संग में सबके उजाले ।

हैसियत पहचानते हैं

ज़िन्दगी के दौर काले ।

तुम थके हो मान लेते-

हैं सफ़र यह ज़िन्दगी का ।

रोकता रस्ता न कोई

प्यार का या बन्दगी का ।

हैं यहीं मुस्कान मन की

हैं यहीं पर दर्द-छाले।

तुम हँसोगे ये अँधेरा,

दूर होता जाएगा ।

तुम हँसोगे रास्ता भी

गाएगा मुस्कराएगा ।

बैठना मत मोड़ पर तू

दीप देहरी पर जलाले ।