भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उजियार हुआ है / ज्योत्स्ना शर्मा
Kavita Kosh से
मन का तार, सितार हुआ है ,
गीतों से... गुलज़ार हुआ है ।
गम अपनाये, खुशियाँ बाँटी ,
मत कहिये व्यापार हुआ है ।
माना राहें बहुत कठिन हैं ,
अब चलना दुश्वार हुआ है ।
बहुत अँधेरा दीप जला लें,
देखें फिर उजियार हुआ है ।
सतत दया हो जिस पर तेरी ,
बन्दा भव से पार हुआ है ।
बोलें तो ऐसा,वो बोलें ,
वाणी का शृंगार हुआ है ।
हम हिंदी हैं एक लगन है ,
हमें वतन से प्यार हुआ है ।