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उट्ठा है सूए दश्त से बादल ग़ुबार का / मेला राम 'वफ़ा'
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उट्ठा है सूए दश्त से बादल ग़ुबार का
वहशी तिरे मनाते हैं मौसम बहार का
ऐ मुहतरिब न सब्र ले मुझ बादाखार का
आया है किन दुआओं से मौसम बहार का
तूफ़ाने-बर्क़-ओ-बाद का मौसम भी ये सही
मौसम है फिर बहार का मौसम बहार का
ऐ अन्दलीब गश न हो फूलों पे इस क़दर
मेहमान चार दिन का है मौसम बहार का
आज़ादियों चमन की हमें भी नसीब थीं
हम से भी साज़गार था मौसम बहार का
क्यों ताइरे-असीरे-क़फ़स तोलता है पर
शायद चमन में आ गया मौसम बहार का
दामन है चाक चाक, गरेबाँ हैं तार तार
मौसम जुनून का है कि मौसम बहार का
क्या रंग लाए वहश्ते-दिवानगाने-इश्क़
क्या गुल खिलाए देखिये मौसम बहार का
दिल जिन के ऐ 'वफ़ा' हैं फसुर्दा मिरी तरह
आयेगा रास क्या उन्हें मौसम बहार का।